सिद्धार्थ कांकरिया @ थांदला
थांदला। मंगलवार का दिन झाबुआ जिले के लिए ‘काला’ दिन भी साबित हुआ तो एक नए सूर्य का उदय होता भी दिखा। जिम्मेदार पद पर बैठे वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किशोरावस्था में नैसर्गिक सुरक्षा (माता-पिता) को छोड़कर शासकीय अधिकारियों की जिम्मेदारी पर पल-बढ़ रही बालिकाओं के साथ अधिकारी द्वारा ही अश्लील हरकत करने का आरोप लगा। आरोप लगने के बाद अधिकारी को गिरफ्तार किया गया। लेकिन पूरे मामले को लेकर जिला स्तब्ध है। पता नही यह घाव कब तक रिसता रहेगा। यह काला दिन तमाम सरकारी योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है।
वही अधिकारियों के खिलाफ जो साहस 13 साल की बालिकाओं ने दिखाया। उससे एक बात तो सिद्ध हो गई। कि जिले में शासन द्वारा चलाए जा रहे ‘गुड टच-बैड टच’ अभियान सफल हो गया। पता नही ऐसी ही कितनी गुमनाम घटनाओं के बाद शासन ने ‘गुड टच-बैड टच’ जैसा अभियान शुरू किया है।
लेकिन असाधारण क्षमताओं से भरी इन बालिकाओं की हिम्मत से निम्नस्तरीय अधिकारी को सबक देकर जिले में एक नया सूर्योदय किया है।
वही अधिकारी की इस हरकत ने शासन के उस सिस्टम में सुधार की गुंजाइश बना दी। जिसमें कई महिला अधिकारियों के होने के बावजूद
कोई भी वरिष्ठ पुरुष अधिकारी बेधड़क कन्या छात्रावास में चेकिंग के लिए घुस जाता है।
बहरहाल बताया जाता है कि आरोपित अधिकारी अपने पूर्व कार्यकाल के दौरान में अश्लील हरकत कर चुके हैं। जिसके बाद वहां भी उन्हें ऐसे ही कारनामों के कारण चर्चाओं में आना पड़ा था।
पूरे मामले में यह जान पड़ता है कि आजादी के इस अमृतकाल में सरकार को नारी शक्ति के लिए और भी कई महत्वपूर्ण फैसले लेना होंगे। तभी दुस्साहसिक पुरुष अपनी मर्यादा में रहकर नारी का सम्मान करना सीखेंगे।
वही पूरे मामले को लेकर एक बात और देखने को मिली कि ‘सीधी पेशाब कांड’ हो या ‘झाबुआ एसडीएम कांड’ पूरे मामले में प्रदेश सरकार आदिवासी समाज के हितों के लिए तत्पर खड़ी है।
दोनों ही मामले में देखने को मिला कि हमेशा पुलिस प्रशासन के सुरक्षा घेरे में रहने वाले यह कथित अपराधी आज लोकतंत्र की जीत में उसी पुलिस प्रशासन के घेरे में तो हैं। लेकिन अंतर यह है कि अब वह अपराधी बनकर घेरे में खड़े हैं।
जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की सबसे शक्तिशाली गठबंधन के खिलाफ देश के सबसे कमजोर माने जाने वाले तबके के साथ ‘पेशाब कांड’ या बदनियति से छूने जैसे कारनामों पर शासन के निर्देश पर, प्रशासन द्वारा, युद्ध स्तर पर की गई कठोरतम कार्रवाई इतना तो संकेत देती है। कि अब सरकारें आदिवासी समाज की भी चिंताएं करने लगी है।
अब किसी नेता को कहां ‘पेशाब’ करना है या किसी अधिकारी को अपनी ‘मन मौज’ के लिए कहां घुसना है। ऐसे क्रियान्वयन करने के पहले सोचना तो होगा ही।


