सिद्धार्थ कांकरिया @ थांदला
थांदला। सूर्यग्रहण और तिथियों में हुए असमंजस के चलते नगर में मंगलवार को गाय गौहरी का पर्व मनाया गया। पर्व पर बड़ी संख्या में पशुपालक निर्धारित स्थान पर पहुंचे और गोवंश की पूजा के बाद पर्व को आतिशबाजी कर उत्साह से मनाया गया। झाबुआ जिले के कई स्थानों पर भगवान कृष्ण के गोवर्धन रूप के मंदिर नहीं होने से चरनोई की भूमि पर इस पर्व को मनाया जाता है। कृषि के अलावा पशु पालन यहां आय का प्रमुख जरिया तो है ही। गोवंश को यहां परिवार का स्थाई हिस्सा भी माना जाता है। अभी भी कई ग्रामीण परिवारों में एक सदस्य स्थाई रूप से ग्वाले का काम भी करता है। इस कारण यहां गोवंश को पशुधन की तरह व परिवार की पूंजी के रूप में आंका जाता है। इस कारण गाय गौहरी का पर्व यहां काफी लोकप्रिय भी है।
उल्लेखनीय है कि सूर्यग्रहण के चलते दीपावली के अगले दिन कुछ स्थानों पर उक्त पर्व नही मनाया गया। इधर असमंजस के चलते कई ग्रामीण भी पर्व नही मना पाए।
पर्व को मनाने के लिए नगर परिषद अध्यक्ष लक्ष्मी सुनील पणदा, व्यापारी एसोसिएशन के पदाधिकारी और भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल भंसाली, भाजपा के युवा नेता संजय भाबर, कमलेश वर्मा, हिंदू जागरण मंच के तुषार व्यास सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने गाय गौहरी के लिए निर्धारित स्थान तेजाजी मंदिर के पीछे बने मैदान में पहुंचकर श्रद्धालुओं को पर्व की बधाई दी।
क्यों मनाया जाता है गाय गौहरी का पर्व
पशु पालकों द्वारा मनाया जाने वाला गाय गोहरी के पर्व को लेकर यहां एक भावुक मान्यता भी है कि पशुपालक गाय को अपनी ‘मां’ का दर्जा देते हैं। पशुपालक करते हुए कई बार गाय को मारना भी पड़ता है। तो अपशब्द भी कहने पड़ते हैं। गाय गौहरी के पर्व को उस व्यवहार के प्रति क्षमायाचना का पर्व भी माना जाता है। ग्वाले इस पर्व पर गायों को पूरी तरह सजाकर मोरपंख के आभूषण पहना कर, बदन पर मेहंदी, चटकीले रंगों से श्रद्धा प्रतीक बनाकर चरनोई की भूमि पर शुभ मुहूर्त में एकत्रित करते हैं। उत्साहित ग्रामीणों का एक समूह गौवंश के पीछे आतिशबाजी करते हुए उन्हें दौड़ाता है। इस दौड़ते हुए गौवंश की पैरों के नीचे ग्वाले लेट जाते हैं। गौवंश इन ग्वालों को रौंदते देते हुए उनके ऊपर से निकल जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को ग्वाले अपने प्रायश्चित के रूप में भी मानते हैं।
वीडियो निर्मल मोठिया


