सिद्धार्थ कांकरिया @ थांदला
थांदला। वर्ष 1983 में बने शासकीय महाविद्यालय थांदला के नामकरण को लेकर बवाल बढ़ता ही जा रहा है। सोमवार को जनभागीदारी समिति द्वारा एक नाम विशेष को लेकर बनी सहमति के बाद विभिन्न छात्र संगठन ने उक्त नाम को लेकर आपत्ति जताई। आपत्ति के बाद छात्र संगठनों ने कुछ देर के लिए महाविद्यालय के स्टॉफ समेत, जनभागीदारी पदाधिकारियों, सदस्यों को बंधक बनाते हुए महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर ताला भी जड़ दिया। वही मंगलवार को छात्र संगठन एनएसयूआई ने धरना प्रदर्शन करते हुए एक ज्ञापन भी सौंपा है। इधर जनभागीदारी समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि नामांतरण की प्रक्रिया पिछले 22 वर्षों से चल रही थी। जिसे लेकर आपसी सहमति के बाद नाम निर्धारित किया गया।
उल्लेखनीय है कि थांदला शासकीय महाविद्यालय 1983 से अस्तित्व में आया है। जिसके बाद 1 जनवरी 1993-94 उक्त महाविद्यालय का नाम श्री जैनाचार्य जवाहरलाल जी मसा के नाम से प्रस्तावित किया गया था। इस प्रस्ताव प्रक्रिया में तत्कालीन जनप्रतिनिधियों की भी सहमति और पत्राचार शामिल रहे। महाविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि कुछ वर्ष तक महाविद्यालय के शासकीय पत्राचार भी जैन आचार्य जवाहरलाल जी मासा के नाम से शुरू हुए। लेकिन विगत कुछ वर्षों से पुनः यह पत्राचार शासकीय महाविद्यालय थांदला के नाम से शुरू हो गए हैं।
सोमवार को जनभागीदारी समिति की एक बैठक थांदला महाविद्यालय में रखी गई। जिसमें कुल 16 सदस्यों में से 11 सदस्य उपस्थित रहे। इन 11 सदस्यों में से 9 सदस्यों ने जैन आचार्य जवाहरलालजी मसा के नाम पर सहमति बनाई। सहमति बनने के बाद छात्र संगठनों ने इस पर आपत्ति दर्ज करवाई। विरोध और आपत्ति दर्ज करवाते हुए उक्त छात्र संगठनों के पदाधिकारियों और सदस्यों ने महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर ताला जड़ दिया। अधिकारियों ने समझाइश देते हुए ताले को खुलवाया। पूरे घटनाक्रम के बाद मंगलवार को एनएसयूआई ने एक ज्ञापन एसडीएम के नाम सौंपा है। जिसमें मांग की है कि जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अमित शाह को तत्काल पद से हटाया जाए और महाविद्यालय का नाम टंट्या भील के नाम से रखा जाए। ज्ञापन में अखिल एबीवीपी और अन्य आदिवासी संगठनों ने भी अपनी सहमती जताई है।
इस संबंध में जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि सोमवार को जनभागीदारी समिति के सदस्यों की बैठक आयोजित की गई। बैठक में 11 सदस्य उपस्थित हुए। जिनमें से 9 सदस्यों ने जैन आचार्य जवाहरलालजी मसा के नाम पर सहमति जताई। जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि नगर के विभिन्न शासकीय शैक्षणिक संस्थाएं, बस स्टैंड आदि आदिवासी जननायको के नाम पर प्रस्तावित हैं। पिछले 22 वर्षों से शासकीय महाविद्यालय का नाम जैनाचार्य जवाहरलालजी मसा के नाम से किए जाने की प्रक्रिया प्रस्तावित है। आपसी सहमति के बाद उक्त नाम पर सहमति बनी है। आदिवासी जननायक भी हमारे पूजनीय नायक हैं।
यदि किसी छात्र संगठन को इस पर आपत्ति है तो वह विरोध दर्ज करवाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन विरोध दर्ज करवाने की भी अपनी एक प्रक्रिया है। किसी को बंधक बनाकर विरोध दर्ज नहीं किया जा सकता है। कुछ छात्र नेताओं द्वारा महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर ताला लगाकर हमें बंधक बनाया गया जो निंदनीय है। शाह ने बताया है कि सहमति बने नाम पर प्रस्ताव पारित किया गया है जिसे आगामी कारवाई के लिए अनुविभागीय अधिकारी के माध्यम से कलेक्टर को सौंप दिया गया है।

आदिवासी बहुल क्षेत्र होने से आदिवासी जननायक का होना चाहिए नाम
इधर आदिवासी छात्र संगठनों का कहना है कि आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण महाविद्यालय का नामकरण आदिवासी जननायक टंट्या भील के नाम से किया जाना चाहिए। उन्होंने शासन से मांग की है कि वह शीघ्र ही उक्त महाविद्यालय का नाम टंट्या भील के नाम से करें। इस संबंध में मंगलवार को एनएसयूआई द्वारा एक ज्ञापन अनुविभागीय अधिकारी के नाम पर भी दिया गया है। ज्ञापन में जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अमित शाह को पद से हटाने शासकीय महाविद्यालय का नाम आदिवासी जननायक टंट्या भील के नाम से करने की मांग रखी गई है।
कैसे बनती है जनभागीदारी समिति
जनभागीदारी समिति का अध्यक्ष शासन द्वारा बनाया जाता है। वहीं उपाध्यक्ष कलेक्टर प्रतिनिधि के रूप में अनुविभागीय अधिकारी और सचिव संबंधित महाविद्यालय के प्राचार्य को बनाया जाता है। इसके अलावा जनभागीदारी समिति का अध्यक्ष स्वयं की समिति बनाने के लिए स्वतंत्र है।
थांदला जनभागीदारी समिति कुल 16 लोगों की समिति है। जिनमें अध्यक्ष अमित शाह, सचिव महाविद्यालय प्राचार्य जीसी मेहता, उपाध्यक्ष कलेक्टर प्रतिनिधि के रूप में अनुविभागीय अधिकारी हैं। इसके अलावा विधायक प्रतिनिधि के रूप में अखिल वोहरा, भाजपा के वरिष्ठ नेता विश्वास सोनी, कामिनी रुनवाल, पार्षद राजू धानक, समाजसेवी बीएल गुप्ता, शांतिलाल सोलंकी, मेहमान भूरिया, मुकेश वसुनिया, आशीष पाटीदार, राजेश वसुनिया, स्वरूप श्रीवास्तव शामिल है। इनमें सांसद द्वारा अपना प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किया गया है। वहीं यूजीसी दिल्ली द्वारा भी अपना प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किया गया है।
इस प्रकार 14 सदस्यों की समिति में से सोमवार की बैठक में 11 सदस्य ही उपस्थित थे। इनमें आशीष पाटीदार, राजेश वसुनिया और स्वरूप श्रीवास्तव अनुपस्थित रहे। 11 सदस्यों की समिति में से 9 सदस्यों ने जैनाचार्य जवाहरलाल जी मसा के नाम पर अपनी सहमति दर्ज करवाई थी। जिसके होता है छात्र संगठनों ने उक्त नाम पर असहमति जताते हुए हंगामा किया।
इस संबंध में अनुविभागीय अधिकारी तरुण जैन का कहना है कि सोमवार को महाविद्यालय नामकरण को लेकर कुछ देर हंगामा हुआ। जिसे समझाईश इसके बाद समाप्त करवा दिया गया है। महाविद्यालय नामकरण का प्रस्ताव जनभागीदारी समिति की ओर से जो आएगा उसे आगामी कार्रवाई के लिए भिजवा दिया जाएगा
इस संबंध में महाविद्यालय के प्राचार्य जीसी मेहता का कहना है कि सोमवार को जनभागीदारी समिति की बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें महाविद्यालय का नाम जैनाचार्य जवाहरलालजी मसा नाम पर किया जाना प्रस्तावित किया गया है। कुछ छात्र संगठनों ने इसमें अपनी आपत्ति भी दर्ज करवाई है।


